An Unbiased View of अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

कुल-मिलाकर बात ये निकली कि आपका अधिकतम श्रम ही प्रार्थना है। आपका अधिकतम श्रम ही प्रार्थना है। जो अपने काम में निरंतर डूबा हुआ है, वो सच्चा प्रार्थी है। और जो अपने काम में निरंतर डूबा हुआ है, वो पाता है कि जैसे एक जादू, चमत्कार सा हो रहा है। क्या?

धनराज पिल्लै के बचपन से लेकर अब तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है।

हमें अपने अंदर विद्यमान अहंकार के भ्रम को खत्म कर देना चाहिए, ताकि हम वास्तविकता को देख सकें और भविष्य की हर कठिनाई से लड़ने और जोखिम उठाने में परिपक्व हो जाएं। अपने अहंकार को भी नष्ट करना चाहिए, website ताकि हम दुनिया की वास्तविक खूबसूरती को देख कर सुकून की अनुभूति कर सकें। इतिहास ऐसे प्रमाणों से भरा है, जहां बड़े से बड़े विद्वान और शूरवीरों को भी अपने घमंड का दंड भुगतना पड़ा था।

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आचार्य: यहाँ सब परेशान करते हैं तुमको। वहाँ पर पेड़ तुमको कहने थोड़ी आता है कि, ‘चल, सैटरडे (शनिवार) हैं, दारु पीते हैं'!

आचार्य: क्योंकि वो गोलू है। उसने अपने-आपको ये बोल दिया है न ‘मैं हूँ'। उसने अपने-आपको एक झूठा नाम दे दिया है कि ‘मैं हूँ'। वो ‘मैं’ ‘मैं’ है ही नहीं, पर वो अपने-आपको क्या बोलता है? ‘मैं’। अब अगर वो मिट गया तो कौन मिट जाएगा?

And ah! What's that twinkling beneath the water? Why, it's the glistening Sangharsh ke Karan course 7 shabdarth, Each individual phrase and phrase a glinting gem to become scooped up and pocketed within your chest of linguistic treasures.

सुमन कुमार घई   (सम्पादक) डॉ. शैलजा सक्सेना   (विशेषांक संपादिका) विजय विक्रान्त   (सहायता) विपिन कुमार सिँह   (वेब डेवलपर)

क्योंकि माफ़ी माँगने का अर्थ है किसी के सामने झुकना, अपने को छोटा बनाना। यह

मिला। उस वर्ष अपने बड़े भाई रमेश के साथ मिलकर उन्होंने मुंबई लीग में अपने

जिसने धारणा बना ली है कि, "मैं जहाँ हूँ, जैसा हूँ, ठीक हूँ, पूर्ण हूँ, स्वस्थ हूँ", उससे तुम पूछो, “क्या हालचाल?”

आप यूँही सोकर के उठे, बिना मुँह धोये जाकर के खड़े हो गये, और बोलते हैं, 'आज न कम से कम पाँच लाख!

अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगना बिल्कुल आसान नहीं होता

आचार्य: तो शरीर मर जाता है? तो कैसी बातें पूछ रहे हो! तुम तो बेहोश भी हो जाते हो तो शरीर नहीं ख़त्म हो जाता। बल्कि कई दफे तो तुम्हें बेहोश करना ज़रूरी होता है ताकि शरीर बचे। तुम्हारी सर्जरी (शल्य-चिकित्सा) होनी है और तुम्हें बेहोश ना किया जाए, तो तुम्हारा ‘मैं’ तो डॉक्टर (चिकित्स्क) की ही गर्दन पकड़ लेगा। कोई डॉक्टर (चिकित्स्क) तुमको बिना बेहोश किए, बिना एनेस्थेसिया (संज्ञाहरक) लगाए तुम्हारी सर्जरी (शल्य-चिकित्सा) करे, तुम देखो कैसे उचक कर उसकी गर्दन पकड़ते हो।

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